आप बढ़ते हैं
१९/०५/'२१
१३:०३
आप बढ़ते हैं...
खुद को तराशते हैं...
आपके अपनों के इर्दगिर्द घूमती समस्याओं से,
जिनसे वे जूजे हैं...
उनके लिए हुए फैसलों से, जो शत प्रतिशत सही न सही, लेकिन अपनों के भले को देखकर लिए गए हों...
हां...
वे इस पितृसत्ताक समाज व्यवस्था के पिताजी, बेटे, भाई, चाचा, नाना, फूफा, या दादा होते हैं...
आप बढ़ते हैं...
उनकी सब यादों से उभरती हुई नई सोच को लेकर...
खुद से खुदकी ही दुनिया को प्रश्न पूछकर...
आप खुद को तराशते हैं...
रास्ते में आती रुकावटों और धूप छांव से छिले हुए तलवों को साथ लेकर,
उनके तजुर्बों को, उनके फैसलों को फिर से तराशकर...
आप...
खुद को तराशते हैं...
हां...
आप बढ़ते हैं।
- रोहित व्यास
मेरे प्यारे दिवंगत दादाजी अनंतराय पी. व्यास को अर्पण.
ज. २९/०९/१९४० स्व. १६/०५/२०२१
/Happy Perspectives/