नमस्कार पाठक मित्रों,
शङ्कराचार्य द्वारा रचित श्री नर्मदाष्टक स्तोत्र काव्य कवन की उत्तम मिसाल है, खास कर तब, जब कोई काव्य या स्तुति संस्कृत में लिखी जाए। काव्य की रचना अगर किसी छंद या अलंकार से हुई हो तब वह उत्तम काव्य कहलाता है। विविध विद्याओंसे युक्त प्रकाण्ड पंडित गण जब ऐसी रचनाएँ लिखते हैं तब वह सदियों तक अपने निशान कायम कर जाते हैं। जब आप इस स्तोत्र को गाते है या फिर शांत चित्त होकर पढ़ते हैं तो यह स्तोत्र आपको आत्यंतिक आनंद दे सकता है।
श्री नर्मदाष्टक स्तोत्रम
द्विषत्सु पापजातजातकारिवारिसंयुतम् ।
कृतान्तदूतकालभूतभीतिहारिवर्मदे
त्वदीयपादपङ्कजं नमामि देवि नर्मदे ॥1॥
त्वदम्बुलीनदीनमीनदिव्यसम्प्रदायकं
कलौ मलौघभारहारि सर्वतीर्थनायकम् ।
सुमच्छकच्छनक्रचक्रचक्रवाकशर्मदे
त्वदीयपादपङ्कजं नमामि देवि नर्मदे ॥2॥
महागभीरनीरपूरपापधूतभूतलं
ध्वनत्समस्तपातकारिदारितापदाचलम् ।
जगल्लये महाभये मृकण्डसूनुहर्म्यदे
त्वदीयपादपङ्कजं नमामि देवि नर्मदे ॥3॥
गतं तदैव मे भवं त्वदम्बुवीक्षितं यदा
मृकण्डसूनुशौनकासुरारिसेवि सर्वदा ।
पुनर्भवाब्धिजन्मजं भवाब्धिदुःखवर्मदे
त्वदीयपादपङ्कजं नमामि देवि नर्मदे ॥4॥
अलक्षलक्षकिन्नरामरासुरादिपूजितं
सुलक्षनीरतीरधीरपक्षिलक्षकूजितम् ।
वसिष्ठसिष्टपिप्पलादिकर्दमादिशर्मदे
त्वदीयपादपङ्कजं नमामि देवि नर्मदे ॥5॥
सनत्कुमारनाचिकेतकश्यपादिषट्पदैः
धृतं स्वकीयमानसेषु नारदादिषट्पदैः ।
रवीन्दुरन्तिदेवदेवराजकर्मशर्मदे
त्वदीयपादपङ्कजं नमामि देवि नर्मदे ॥6॥
अलक्षलक्षलक्षपापलक्षसारसायुधं
ततस्तु जीवजन्तुतन्तुभुक्तिमुक्तिदायकम् ।
विरञ्चिविष्णुशङ्करस्वकीयधामवर्मदे
त्वदीयपादपङ्कजं नमामि देवि नर्मदे ॥7॥
अहोऽमृतं स्वनं श्रुतं महेशकेशजातटे
किरातसूतवाडवेषु पण्डिते शठे नटे ।
दुरन्तपापतापहारिसर्वजन्तुशर्मदे
त्वदीयपादपङ्कजं नमामि देवि नर्मदे ॥8॥
इदं तु नर्मदाष्टकं त्रिकालमेव ये सदा
पठन्ति ते निरन्तरं न यान्ति दुर्गतिं कदा ।
सुलभ्य देहदुर्लभं महेशधामगौरवं
पुनर्भवा नरा न वै विलोकयन्ति रौरवम् ॥9॥
इति श्री शंकराचार्य विरचितम श्री नर्मदाष्टक स्तोत्रम सम्पूर्ण
धन्यवाद, धन्यवाद, धन्यवाद...